सिर्फ दुनिया काफी नहीं है

जिन्दगी जीते जीते, जरूरतों को पाकर उन्हें बेकार बनते देखते देखते, एक दिन खुद से पूँछ बैठा था की - आखिर मेरी इच्छाओं का अंत क्या है ? क्या पूरी दुनिया अपनी जेब में भर कर ही मेरा मन भरेगा ? अन्दर से किसी ने जबाब दिया - दुनिया काफी नहीं है .........

बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

"शांति बनाये रखें उत्तेजित न हों .........."



६० सालों से बिचाराधीन फैसला आया है, माता कुंती ने कहा है कि पांचो भाई बाँट लो . और भाई लोग अपना अपना अपना बाँटने को तैयार हों कि न हों सोचने में लग गए . रामायण महाभारत के दिन बीत गए अब भाई लोग आपस में बाँट नहीं पाते, पहले बाँट लेते थे , क्यूंकि पहले भाई होते थे माँ होती थी और जिसको बाँटना है वो होता था अब कोई और भी है कौन है सब जानते हैं . ये वही हैं जो हमसे कहते हैं " कोर्ट के फैसले का सम्मान करो भब्य मंदिर निर्माण करो " या "शांति बनाये रखो पर ठगा महसूस कर रहा है मुसलमान" . इस फैसले के बाद जो मेरी आँखों ने देखा खाली सड़कें ,बंद दुकाने, चौपट कारोबार, डरा सहमा आदमी . बता देना जरूरी हो गया है कि मैं धर्म से हिन्दू हूँ .मुझे फैसला सुनते ही सिर्फ एक ही ख्याल आया कि अब हमें डरना चाहिए फैसला मुसलमानों के हक़ में नहीं है जरूर अब हिन्दुओं को डरना चाहिए. सड़क का हर आम आदमी मुसलमान हो गया , सब्जी बेचने वाला जहर खुरान हो गया, फैसला मेरे हक़ में आते ही मुझे लगा ,आज मेरा देश पाकिस्तान हो गया .
फिर धीरे धीरे मेरे अन्दर का इन्सान जागने लगा मैंने सोचा , मैं इसलिए डर रहा हूँ कि फैसला मेरे हक़ में आया है , क्या फैसला मेरे बिरोध में आता तो मैं डराने वाली टीम में सामिल होता ? क्या एक जमीन के कारन
 जहाँ पता नहीं कोई मंदिर मस्जिद था भी कि नहीं मैं किसी से उसकी उम्मीदें , उसकी जिन्दगी , उसका परिवार छीन सकता हूँ. एक दिन पहले मेरे एक दोस्त से बात हुई (मुझे नाम लिखने में कोई समस्या नहीं है रियाज और इम्तियाज़ मेरे दो दोस्त हैं जो मुसलमान हैं अगर इससे किसी धर्म को कोई समस्या है तो मैं उस धर्मं को नहीं मानता ) मैंने उससे कहा कि अगर कल मंदिर के हक़ में फैसला आता है तो तुम क्या करोगे ? उसने जबाब दिया मै कुछ नहीं करूंगा. मैंने आगे पूंछा अगर मस्जिद बनता है तो ? जबाब वही था अबे मुझे क्या करना है कौन सा मुझे अयोध्या जा के नमाज अदा करना है . फिर ढेर सारा मजाक होता रहा जो मैं लिख भी नहीं सकता . ये बात एक दिन पहले कि थी लेकिन फैसले वाले दिन के बाद सब बदल चुका था. मैं सोचता रहा कि आज उससे कैसे मजाक करूंगा कैसे नजर मिलाऊँगा, ऐसा लगने लगा जैसे ये नामुराद फैसला मैंने ही सुनाया है, एक फैसला जिसका मुझे कभी इंतजार नहीं था फिर भी कल साम से जिसे लेकर मैं बहुत खुस था जैसे अब मेरे लिए एक लाइन मात्र बन के रह गया "कोर्ट के फैसले का सम्मान करो शांति बनाये रखो ,अभी रास्ता खुला है , ये वो " भाड़ में जाये मंदिर मस्जिद मेरे मन से आवाज आई कि मैं आज अपने दोस्तों से नजर कैसे मिलाउंगा एक दिन पहले घर वाले कह रहे थे कि आज ऑफिस न जाओ तो मैंने अनसुना कर दिया था. पर आज जब सब कुछ सामान्य था तो मेरा बहार जाने का मन नहीं था . पेपर पढो तो नेतावों कि वही पुरानी राग "शांति बनाये रखें उत्तेजित न हों .........." ऐसा लगता था जैसे उनकी आवाज में एक दर्द हो एक टीस हो कि आखिर ये लोग शांति क्यूँ बनाये बैठे हैं? उत्तेजित क्यूँ नहीं होते ? एक दुसरे को मार क्यूँ नहीं डालते , दूसरों के  घर कब जलाएंगे ये ?कब? कब सुरु  होगा युवतीओं का बलात्कार , बच्चों कि हत्या , लूट डकैती ? कब ? लेकिन नहीं इसबार नहीं, सबने दिखा दिया कि अब नहीं तुम्हारी दाल नहीं गलनी अब यहाँ , तुम बहुत भव्य मंदिर बनाओ या सुप्रीम कोर्ट जाओ हम नहीं आने वाले तुम्हारे भुलावे में , हम शांत दिख रहे हैं पर शांत नहीं हैं हमारे दिल में बहुत गुब्बार भरा है , मन करता है आपने दोस्तों को पकड़ कर गले से भींच लूं मन करता है उन्हें बता दूं कि नहीं चाहिए मुझे मंदिर ,मस्जिद , गुरुद्वारा या कुछ भी मुझे बस चाहिए कि फिर से गुप्ता की दुकान पर तेरे साथ चाय कि चुस्कियां ली जाएँ  , चैटिंग में तेरी बातों कि धज्जियाँ उड़ाई जाएँ , तेरी गर्लफ्रैंड के नाम पर तुझे खूब चिढाऊँ और तू हमेसा एक अच्छा जबाब देने की कोसिस में अपना मजाक बनवाता रहे. पर नहीं मैं नहीं कह सकता, मैं नहीं कर सकता क्यूंकि मुझे उसका वोट नहीं लेना मैं नेता नहीं हूँ , मैंने शांति बना राखी है , मैं जानता हूँ मेरे दोस्त को भी मेरे जैसा ही महसूस हो रहा होगा, एक दो दिन में हम धीरे से वैसे ही हो जायेंगे जैसे पहले थे न उसे अयोध्या जाना है नमाज अदा करने, न मुझे जाना है राम के दर्शन करने , ऐसे ही अनजाने में हम लोग कोर्ट के फैसले का सम्मान करते रहेंगे क्योंकि  हम ऐसे ही हैं , हमें किसी का सम्मान करने के लिए अलग से कुछ भी नहीं करना पड़ता , हमारे व्यवहार में है सम्मान करना , प्यार करना , खुश रहना , खुश रखना.
लेकिन उनका क्या जो हमें बताते हैं कि फैसले का सम्मान करो शांति बनाये रखो , उनमे से ही कल कोई फिर हमें इसी जगह लाकर खड़ा करेगा . फिर हमपर थोपा जायेगा एक फैसला और बोला जायेगा कि अब इसका सम्मान करो  शांति बनाये रखो . कोई ये नहीं पूंछता कि ये जो तुम कर रहे हो इससे हमारे अन्दर कितने मंदिर टूटते हैं , कितनी मस्जिदें फ़ना हो जाती हैं कभी देखा है ? इसका दोष किसके सर है ? और कब होगा इसका फैसला कब सजा मिलेगी इन समाज के ठेकेदारों को? कब कोर्ट इतनी ताकतवर होगी कि इन दोमुहे सापों का फन कुचल सकेगी, कब सच में सम्मान से हमारा सर झुकेगा कोर्ट के फैसलों के लिए ?